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सच
~ऋचा नागर (2016)
धमनियों में धमकता सच
जब हिम्मत बनकर
आज़ादी मांगने लगे
मनुवाद से
ब्राह्मणवाद से
पूंजीवाद से
फ़ासीवाद से
तो कोई सियासी हैवानियत
उसे रौंद नहीं सकती
देशद्रोही
क़रार करके।
धमनियों में धमकता सच
जब नाम देने लगे
उन ज़ुल्मों को
जिनमें हममें से कितने ही लोग
दर रोज़ शरीक होते हैं
तो
उस सच के मुँह पर
ज़बरन हाथ धर के
उसे वापस
घर में ठेल देना
मुमकिन नहीं
धमनियों में धमकता सच
जब उस देहरी पर से पर्दा उठा दे
जहाँ विचारवानों की बैठकों
में बँटने वाली चाय की प्यालिओं में से
छूआछूत की गंध आती हो
जहाँ की चाहरदीवारियों के भीतर
हगने-मूतने के लिए
किसी ख़ास जाति का ठप्पा
ओढ़ना ज़रूरी हो
जहाँ अर्जुन की ख़ातिर
कितने ही एकलव्यों को
बार-बार आत्महत्या
करनी पड़े
तो कोई भी झूठ
रोक नहीं सकता
उस इज़्ज़त का
जनाज़ा उठने से
धमनियों में धमकता सच
जब चीख़-चीख़कर नंगा कर दे
उस देश प्रेम की असलियत को
जहाँ एक क़ौम के
क़त्लेआम को खुलेआम शह दी जा रही हो
और वही सच
जब भस्म कर दे
शर्मो-हया की उन परतों को
जो औरत को
उसके घर से
उसके प्यार से
उसके हक़ से
उसकी रूह से
हर मोड़ पर पराया
करने को आमादा हों
तो
धमनियों में धमकता सच
जला देगा हर झूठ को
और आज़ादी माँगता रहेगा
मनुवाद से
ब्राह्मणवाद से
पूंजीवाद से
फ़ासीवाद से
साम्राज्यवाद से
रोहित से कन्हैय्या तक
कन्हैय्या से शेहला तक
शेहला से सोनी सोढ़ी तक
हैदराबाद से दिल्ली तक
कश्मीर से बस्तर तक
तुम्हारे घर से मेरे दर तक
मेरी धड़कन से तुम्हारी सांस तक
दौड़ेगा
यह सच
हम सबकी धमनियों में
और
देखते रहना–
इस वक़्त का दावा है
कि कोई भी सियासी हैवानियत
रौंद नहीं सकेगी
इस सच को
देशद्रोही
क़रार करके।