अक्टूबर 1994
मेरे दार अस्सलाम शहर
छोड़ने के
नौ महीनों बाद
चिट्ठी आई परीन की
आख़िरी लाइन में
लिखा था उसने—
“सोफ़िया
को तुम्हारा सलाम
नहीं दे सकी—
सोफ़िया तो तुम्हारे जाने के
एकाध माह बाद ही
गुज़र गई थी
उसके पेट का बच्चा भी—
एड्स का केस था”
कैसे
मर गई सोफ़िया?
वो तो अभी
सत्रह की भी नहीं थी
वो तो रोज़ाना
पेट के भीतर बच्चा लादे
पैदल आती जाती थी
मागोमेनी से किसूटू तक—
शहर के काले हिस्से से
शहर के भूरे हिस्से तक
वो ही सोफ़िया
जिसे बात बात में
ख़ुराफ़ात सूझती थी
जो किस्वाहिली में
मेरी ग़लतियां सुनकर
जो़र–ज़ोर से
हँसती थी…
जो मुझे काली–भूरी
चमड़ियों के रिश्तों के
अनेकों भेद बताती थी
जिसे मेरा अपने शोध को
“काम” कहना
दुनिया का सबसे
बेहतरीन
मज़ाक़ लगता था
वो ही सोफ़िया
जो कहती थी
कि उसे
अपने बच्चे की
परवरिश
के लिये
एक भी बाप की
ज़रूरत नहीं—
(न अपने
न बच्चे के)
कैसे मर गई सोफ़िया
अपने अन्जन्में बच्चे के
साथ ही?
वो तो अभी
सत्रह की भी नहीं थी?