काले सफ़ेद चौख़ानों की
यह बिसात
जिस पर
निगाहें टिकाकर
हम लड़ रहे हैं
ज़माने से
हम सबके वज़ीर
मर चुके हैं
और हम
हर सामने वाले इंसान को
धर दबोचते हैं
अपना प्यादा बनाने की
फ़िराक़ में
वो
हमारी मुठ्ठी के कसाव में
कसमसाता है
छटपटाता है
पर हम अपनी पकड़
और भी मज़बूत कर देते हैं
उस ग़रीब प्यादे की
गरदन पर
ताकि
उसको
अपना मोहरा बनाकर
हम अपने वज़ीर को जिला सकें
और इस काली सफ़ेद बिसात पर
ज़माने को
हरा सकें।